Thursday, 10 October 2013

बिना कोचिंग के सफल हुए 50 %आइआइटियन!

आइआइटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए देश भर में संस्थानों की भरमार है. इनका दावा है कि आइआइटी में सफल होने के लिए उनका सहारा लेना जरूरी है. हर वर्ष आइआइटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (ज्वाइंट इंट्रेंस इक्जाम) का परिणाम जारी होने के बाद से ही प्रचार शुरू हो जाता है. विज्ञापनों के जरिये अपने संस्थान के विद्यार्थियों की सफलता का दावा किया जाता है. इससे आकर्षित होकर छात्र उन संस्थानों में दाखिला लेते हैं. इस तरह उनका बिजनेस फल-फूल रहा है. आइआइटी के विभित्र जोन के सर्वे में पता चला है कि आधे से अधिक विद्यार्थियों ने बिना कोचिंग क्लास किये ही प्रवेश परीक्षा में सफलता अर्जित की. 

सर्वे में इस वर्ष जेइइ-एडवांस में सफल लगभग 50 फीसदी विद्यार्थियों ने बताया कि उन्होंने बगैर कोचिंग क्लास किये यह सफलता पायी है. स्वयं परीक्षा की तैयारी की और आत्म विश्वास के बल पर सफलता अर्जित की. 

इस वर्ष नामांकन ले चुके सभी विद्यार्थियों से पूछा गया कि उन्होंने परीक्षा की तैयारी कैसे की थी. खुद से या कोचिंग के अन्य तरीकों, जैसे क्लास रूम सीरीज, डिस्टेंस लर्निंग व ट्यूटोरियल नोट्स या फिर मॉक टेस्ट के जरिये? इसके जवाब में पचास फीसदी विद्यार्थियों ने बताया कि यह सफलता उन्होंने अपने तरीके से पढ़ाई की बदौलत हासिल की. जेइइ ने अपने विश्लेषण में पाया है कि यह आंकड़ा अलग-अलग वर्षों में घटता-बढ़ता रहा है. वर्ष 07 में आइआइटी पहुंचे करीब 60 फीसदी विद्यार्थी बगैर कोचिंग वाले थे. वहीं वर्ष 08 में यह आंकड़ा घट कर 45 फीसदी हो गया. 

हालांकि कोचिंग संस्थान संचालक इस आंकड़े को खारिज करते है. रांची व पटना में आइआइटी-जेइइ के कुछ कोचिंग संचालकों ने कहा कि उनके विद्यार्थी उनसे पूछते हैं कि उन्हें कोचिंग वाली बात का खुलासा करना चाहिए या नहीं. संचालकों के अनुसार कई अन्य संस्थानों की तरह हम भी उन्हें ऐसा करने से मना कर देते हैं. आशंका रहती है कि कहीं आइआइटी प्रबंधन बगैर कोचिंग वाले विद्यार्थियों को ज्यादा सहयोग व सहायता करने संबंधी कोई निर्णय न ले ले. 

दूसरे संस्थानों के संचालक भी मानते हैं कि बगैर कोचिंग के बेहतर रैंक पाना मुश्किल है. आइआइटी कानपुर में शिक्षक रहे विजय सिंह के अनुसार ज्यादातर कोचिंग संस्थान 90 के दशक में खुले. खास कर वर्ष 95 व इसके बाद. इससे पहले कुछ लोग ही आइआइटी की तैयारी कराते थे. पर दशक के शुरुआती वर्षों में राजस्थान का कोटा कोचिंग हब के रूप में उभरा. 

बाद के एक वर्ष में तो मुंबई जोन में सफल होने वाले परीक्षार्थियों की एक बड़ी संख्या कोटा से ही थी. इसके बाद न सिर्फ कोटा बल्कि देश भर में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग संस्थान खुल गये. आइआइटी कानपुर की एक फैकल्टी का अपना अनुभव है कि कोचिंग के जरिये आइआइटी में प्रवेश पाने वाले कई ऐसे विद्यार्थी भी थे, जो चार साल के कोर्स के लिए छह से सात साल लगा रहे थे. 

इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए वर्ष 95 में प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार सीएनआर राव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया. इस कमेटी ने किसी विद्यार्थी के आइआइटी में प्रवेश के लिए अधिकतम दो बार ही जेइइ की परीक्षा दे पाने की शर्त तय की. आइआइटी गुवाहाटी में गणित के एक प्रोफेसर ने का मानना है कि सर्वे में शामिल सभी विद्यार्थी सही तसवीर पेश नहीं कर रहे. गरीब व अभाव वाली पृष्ठभूमि के कुछ विद्यार्थी ऐसे जरूर होंगे, पर विद्यार्थियों का एक बड़ा तबका तो कोचिंग अवश्य लेता है.वरीय संवाददाता,रांची

आइआइटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए देश भर में संस्थानों की भरमार है. इनका दावा है कि आइआइटी में सफल होने के लिए उनका सहारा लेना जरूरी है. हर वर्ष आइआइटी की संयुक्त प्रवेश परीक्षा (ज्वाइंट इंट्रेंस इक्जाम) का परिणाम जारी होने के बाद से ही प्रचार शुरू हो जाता है. विज्ञापनों के जरिये अपने संस्थान के विद्यार्थियों की सफलता का दावा किया जाता है. इससे आकर्षित होकर छात्र उन संस्थानों में दाखिला लेते हैं. इस तरह उनका बिजनेस फल-फूल रहा है. आइआइटी के विभित्र जोन के सर्वे में पता चला है कि आधे से अधिक विद्यार्थियों ने बिना कोचिंग क्लास किये ही प्रवेश परीक्षा में सफलता अर्जित की. 

सर्वे में इस वर्ष जेइइ-एडवांस में सफल लगभग 50 फीसदी विद्यार्थियों ने बताया कि उन्होंने बगैर कोचिंग क्लास किये यह सफलता पायी है. स्वयं परीक्षा की तैयारी की और आत्म विश्वास के बल पर सफलता अर्जित की. 

इस वर्ष नामांकन ले चुके सभी विद्यार्थियों से पूछा गया कि उन्होंने परीक्षा की तैयारी कैसे की थी. खुद से या कोचिंग के अन्य तरीकों, जैसे क्लास रूम सीरीज, डिस्टेंस लर्निंग व ट्यूटोरियल नोट्स या फिर मॉक टेस्ट के जरिये? इसके जवाब में पचास फीसदी विद्यार्थियों ने बताया कि यह सफलता उन्होंने अपने तरीके से पढ़ाई की बदौलत हासिल की. जेइइ ने अपने विश्लेषण में पाया है कि यह आंकड़ा अलग-अलग वर्षों में घटता-बढ़ता रहा है. वर्ष 07 में आइआइटी पहुंचे करीब 60 फीसदी विद्यार्थी बगैर कोचिंग वाले थे. वहीं वर्ष 08 में यह आंकड़ा घट कर 45 फीसदी हो गया. 

हालांकि कोचिंग संस्थान संचालक इस आंकड़े को खारिज करते है. रांची व पटना में आइआइटी-जेइइ के कुछ कोचिंग संचालकों ने कहा कि उनके विद्यार्थी उनसे पूछते हैं कि उन्हें कोचिंग वाली बात का खुलासा करना चाहिए या नहीं. संचालकों के अनुसार कई अन्य संस्थानों की तरह हम भी उन्हें ऐसा करने से मना कर देते हैं. आशंका रहती है कि कहीं आइआइटी प्रबंधन बगैर कोचिंग वाले विद्यार्थियों को ज्यादा सहयोग व सहायता करने संबंधी कोई निर्णय न ले ले. 

दूसरे संस्थानों के संचालक भी मानते हैं कि बगैर कोचिंग के बेहतर रैंक पाना मुश्किल है. आइआइटी कानपुर में शिक्षक रहे विजय सिंह के अनुसार ज्यादातर कोचिंग संस्थान 90 के दशक में खुले. खास कर वर्ष 95 व इसके बाद. इससे पहले कुछ लोग ही आइआइटी की तैयारी कराते थे. पर दशक के शुरुआती वर्षों में राजस्थान का कोटा कोचिंग हब के रूप में उभरा. 

बाद के एक वर्ष में तो मुंबई जोन में सफल होने वाले परीक्षार्थियों की एक बड़ी संख्या कोटा से ही थी. इसके बाद न सिर्फ कोटा बल्कि देश भर में कुकुरमुत्ते की तरह कोचिंग संस्थान खुल गये. आइआइटी कानपुर की एक फैकल्टी का अपना अनुभव है कि कोचिंग के जरिये आइआइटी में प्रवेश पाने वाले कई ऐसे विद्यार्थी भी थे, जो चार साल के कोर्स के लिए छह से सात साल लगा रहे थे. 

इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए वर्ष 95 में प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार सीएनआर राव की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया. इस कमेटी ने किसी विद्यार्थी के आइआइटी में प्रवेश के लिए अधिकतम दो बार ही जेइइ की परीक्षा दे पाने की शर्त तय की. आइआइटी गुवाहाटी में गणित के एक प्रोफेसर ने का मानना है कि सर्वे में शामिल सभी विद्यार्थी सही तसवीर पेश नहीं कर रहे. गरीब व अभाव वाली पृष्ठभूमि के कुछ विद्यार्थी ऐसे जरूर होंगे, पर विद्यार्थियों का एक बड़ा तबका तो कोचिंग अवश्य लेता है.


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