भारतीय इतिहास के अहम स्तंभ स्वामी विवेकानंद की 12 जनवरी, 2013 को 150वीं जयंती है, जिसे भारत सहित पूरे विश्व में उस महापुरुष के प्रति अगाध श्रद्धा और आदर के साथ मनाया जाएगा।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रोफेसर आनंद कुमार ने कहा ‘राष्ट्रीय नवजागरण के अग्रदूत की भूमिका निभाने वाले स्वामी विवेकानंद को लेकर भारतीय जनमानस में कई तरह की छवियां अंकित हैं। सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए उनके द्वारा शुरू किया गया अभियान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। साथ ही एक भारतीय युवा के रूप में जीवन जीने का उन्होंने जो आदर्श प्रस्तुत किया वह आज के समय में भी युवाओं के लिए ‘रोल मॉडल’ है।’
वर्ष 1893 में शिकागो विश्व हिन्दू सम्मेलन में भाग लेकर भारतीय संस्कृति का झंडा बुलंद करने वाले विवेकानंद ने पूर्व और पश्चिम का एक अद्भुत सहचर्य प्रस्तुत किया। शायद यही वजह है कि उनके बारे में एक बार सुभाष चन्द्र बोस ने लिखा ‘स्वामी जी ने पूर्व एवं पश्चिम, धर्म एवं विज्ञान, भूत एवं वर्तमान का आपस में मेल कराया। इस लिहाज से वह महान हैं। भारतवासियों को उनकी शिक्षा से अभूतपूर्व आत्म सम्मान, आत्म निर्भरता एवं आत्म विश्वास मिला।’ यायावर जीवन व्यतीत करने वाले स्वामी विवेकानंद पर प्रकाशित मशहूर बांग्ला लेखक शंकर की पुस्तक ‘द मॉन्क ऐज मैन’ में कहा गया है कि वह कई बीमारियों से पीड़ित थे। शायद यही वजह है जब बच्चे उनके पास गीता का उपदेश सुनने के लिए आए तो उन्होंने कहा कि गीता नहीं फुटबॉल खेलो।
उन्होंने कहा ‘मैं चाहता हूं कि तुम्हारी मांसपेशियां पत्थर-सी मजबूत हों और तुम्हारे दिमाग में बिजली की तरह कौंधने वाले विचार आएं।’ विवेकानंद ने अपने जीवन और विचारों में आधुनिकता को समुचित स्थान दिया था। उनसे जुड़े इस पहलू से आधुनिक भारत के निर्माता पंडित जवाहर लाल नेहरू भी भली-भांति परिचित थे।
स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखा है ‘प्राचीन मूल्यों से जुड़े, भारत की प्रतिष्ठा पर गौरव महसूस करने वाले विवेकानंद ने जीवन की कठिनाइयों के प्रति आधुनिक दृष्टिकोण अपनाया। वह एक तरह से प्राचीन और वर्तमान भारत के बीच की कड़ी थे। उन्होंने दुखियों और हतोत्साहित हिन्दू संस्कृति के लिए मरहम का काम किया और उन्हें स्वाभिमान की भावना से भरा।’
कई विशिष्ट ग्रंथों की रचना करने वाले विवेकानंद जब शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में बोलने के लिए गए तो उन्होंने वहां भारत की एक अविस्मरणीय गाथा लिख डाली।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना करने वाले स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन को लेकर लिखा है, ‘यह कहा जा सकता है, उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो हिन्दुओं के धार्मिक विचार सामने आने शुरू हुए लेकिन जब उन्होंने खत्म किया तब वहां हिन्दू धर्म का निर्माण हो गया।’
कई बीमारियों से लड़ते हुए चार जुलाई, 1902 को विवेकानंद का देहावसान हो गया। उस समय इस यशस्वी विद्वान की उम्र महज 39 साल थी। (भाषा)
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